buddha purnima बुद्ध पूर्णिमा विशेष: जानें दुख-निवारण का मार्ग सिद्धार्थ गौतम से बुद्ध तक की यात्रा बेहद प्रेरक|
buddha purnima तप और ध्यान निरंजना नदी के तट पर
buddha purnima लगभग 6 वर्ष बीतने पर निरंजना नदी के तट पर वह तप और ध्यान करने लगे। तीन माह बाद उनके साथ पांच अन्य भिक्षु आ गए। एक रात्रि उन्हें लगा कि इस तरह शरीर को कष्ट देने से कोई लाभ नहीं है। सुबह उठकर उन्होंने नदी में स्नान किया और उरुवेला गांव जाने लगे। रास्ते में कमजोरी के कारण वह बेहोश हो गए। उसी समय सुजाता नाम की स्त्री पूजा के लिए जंगल की ओर जा रही थी। कई आश्रमों में सब कुछ सीखने के उपरांत भी गौतम की जिज्ञासा शांत नहीं हुई।
buddha purnima जीवन की नई यात्रा 29 वें वर्ष में सबके कल्याण के लिए
buddha purnima जिनके जन्म पर ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी की थी यह वही सिद्धार्थ गौतम थे, कि वह या तो एक महान सम्राट होंगे या महान संन्यासी। इसी संन्यास से बचाने के लिए राजा ने सारे ऐश्वर्य राज प्रासाद में ही इकट्ठा किए और राजकुमार के बाहर जाने पर प्रतिबंध लगाया। पर ऐसा होता कहां है? जो राजकुमार तपती दोपहर में खेतों में काम करने वालों को देखकर या पक्षी के तीर लगने पर करुणा से उद्विग्न हो जाता था, वह अपने जीवन के 29वें वर्ष में सबके कल्याण के लिए एक नई यात्रा पर निकल चुका था
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buddha purnima महाराजा शुद्धोदन के राज प्रासाद से निकलकर राज्य की सीमा से बाहर जाने लगे।
buddha purnima रात्रि की नीरवता को तोड़ते हुए सिद्धार्थ गौतम अपने सारथी छन्ना के साथ महाराजा शुद्धोदन के राज प्रासाद से निकलकर राज्य की सीमा से बाहर जाने लगे। पौ फटते-फटते दोनों अनोमा नदी के तट पर पहुंचे। नदी के पार दूसरा राज्य और घना जंगल था। दोनों ने सावधानीपूर्वक नदी पार की। सिद्धार्थ ने तलवार से अपने बालों को काटा और अपनी तलवार, केश और अपने प्रिय घोड़े कंथक की लगाम छन्ना के हाथ में देकर उसे वापस जाने का निर्देश दिया। ध्यान के दौरान गौतम बुद्ध को संसार के दुखों और उनके निवारण के विषय में ज्ञान प्राप्त हुआ, जिसके अनुसार दुखों के निवारण का अष्टांगिक मार्ग ही सद्धर्म है।
buddha purnima लगभग 6 वर्ष बीतने पर निरंजना नदी के तट पर वह तप और ध्यान करने लगे।
buddha purnima सुबह उठकर उन्होंने नदी में स्नान किया और उरुवेला गांव जाने लगे। रास्ते में कमजोरी के कारण वह बेहोश हो गए।
buddha purnima वह अपने जीवन के 29वें वर्ष में सबके कल्याण के लिए एक नई यात्रा पर निकल चुका था
buddha purnima इसी संन्यास से बचाने के लिए राजा ने सारे ऐश्वर्य राज प्रासाद में ही इकट्ठा किए और राजकुमार के बाहर जाने पर प्रतिबंध लगाया। पर ऐसा होता कहां है
buddha purnima जिनके जन्म पर ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी की थी यह वही सिद्धार्थ गौतम थे
buddha purnima वह या तो एक महान सम्राट होंगे या महान संन्यासी।
buddha purnima उसी समय सुजाता नाम की स्त्री पूजा के लिए जंगल की ओर जा रही थी।
buddha purnima कई आश्रमों में सब कुछ सीखने के उपरांत भी गौतम की जिज्ञासा शांत नहीं हुई।
buddha purnima जो राजकुमार तपती दोपहर में खेतों में काम करने वालों को देखकर या पक्षी के तीर लगने पर करुणा से उद्विग्न हो जाता था
buddha purnima रात्रि की नीरवता को तोड़ते हुए सिद्धार्थ गौतम अपने सारथी छन्ना के साथ महाराजा शुद्धोदन के राज प्रासाद से निकलकर राज्य की सीमा से बाहर जाने लगे।
buddha purnima सिद्धार्थ ने तलवार से अपने बालों को काटा और अपनी तलवार, केश और अपने प्रिय घोड़े कंथक की लगाम छन्ना के हाथ में देकर उसे वापस जाने का निर्देश दिया।