One Nation One Election: देश में कब कब हुए एक साथ चुनाव !

One Nation One Election: देश में कब तक हुए एक साथ चुनाव, क्यों अलग-अलग होने लगे लोकसभा और विधानसभा के चुनाव?

One Nation One Election: देश में कब कब हुए एक साथ चुनाव !
One Nation One Election: देश में कब कब हुए एक साथ चुनाव !

One Nation One Election: देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी एक देश एक चुनाव के लिए कई बार बोल चुके है

One Nation One Election: 2 सितंबर, 2023 को पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक साथ चुनाव पर उच्च स्तरीय समिति गठित की गई थी।

One Nation One Election: समिति ने इस साल की शुरुआत में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को 18,626 पन्नों वाली अपनी रिपोर्ट सौंपी। रिपोर्ट में बताया गया है कि 1951 से 1967 के बीच एक साथ चुनाव हुए है।

https://atnsamachar.com/2024/09/04/jammu-kashmir-elections-atn-samachar/

 

One Nation One Election: देश में एक बार फिर ‘एक देश एक चुनाव’ की चर्चा शुरु हो गई है। इसे लेकर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के नेतृत्व में एक कमेटी बनाई गई थी जिसकी रिपोर्ट को अब मंजूरी मिल गई है। केंद्रीय मंत्रिमंडल की मंजूरी के बाद सरकार आगामी शीतकालीन सत्र में प्रस्ताव को सदन में पेश कर सकती है।

कोविंद समिति ने साल की शुरुआत में अपनी रिपोर्ट भी राष्ट्रपति को सौंपी थी। 191 दिनों में तैयार 18,626 पन्नों की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 2029 से देश में पहले चरण में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाएं। इसके बाद 100 दिनों के भीतर दूसरे चरण में स्थानीय निकाय के चुनाव कराए जा सकते हैं। कोविंद समिति ने यह भी कहा कि 1951 से 1967 के बीच एक साथ चुनाव हुए हैं।

 

One Nation One Election: एक साथ चुनाव कब बंद हुए? इसकी वजह क्या थी? आइये जानते हैं कि देश में कब एक साथ चुनाव हुए थे?

https://atnsamachar.com/2024/08/21/pm-modi-poland-visit-atn-samachar/

One Nation One Election: पहले कब-कब एक साथ चुनाव हुए?
One Nation One Election: आजादी के बाद देश में पहली बार 1951-52 में चुनाव हुए। तब लोकसभा के साथ ही सभी राज्यों की विधानसभा के चुनाव भी संपन्न हुए थे। इसके बाद 1957, 1962 और 1967 में भी एक साथ लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराए गए। 1968-69 के बाद यह सिलसिला टूट गया, क्योंकि कुछ विधानसभाएं विभिन्न कारणों से भंग कर दी गई थीं।

One Nation One Election: जब साथ चुनाव कराने के लिए भंग की गई विधानसभा
One Nation One Election: कोविंद कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक आंध्र प्रदेश राज्य का गठन 1953 में मद्रास के क्षेत्रों को काटकर किया गया था।  उस वक्त इसमें 190 सीटों की विधानसभा थी। आंध्र प्रदेश में पहले राज्य विधान सभा चुनाव फरवरी 1955 में हुए। दूसरे आम निर्वाचन 1957 में हुए।

1957 में, सात राज्य विधान सभाओं (बिहार, बॉम्बे, मद्रास, मैसूर, पंजाब, उत्तर प्रदेश और पश्चिमी बंगाल) का कार्यकाल लोकसभा के कार्यकाल के साथ समाप्त नहीं हुआ। सभी राज्य विधान सभाओं को भंग कर दिया गया ताकि साथ-साथ चुनाव हो सके।’ राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 को 1956 में पारित किया गया था। एक साल पश्चात् दूसरा आम निर्वाचन 1957 में हुआ।
One Nation One Election: केरल पहला राज्य जहां राज्य  सरकार को किया गया बर्खास्त
One Nation One Election: 1957 के आम चुनाव में कांग्रेस को सबसे तगड़ा झटका देश के दक्षिणी छोर पर स्थित केरल से लगा। यहां भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी कांग्रेस के सामने एक बड़ी चुनौती के रूप में सामने आई। चुनौती भी ऐसी कि इस पार्टी ने कांग्रेस को राज्य की सत्ता से बाहर कर दिया। इसके साथ ही आजादी के 10 साल बाद केरल वह पहला राज्य बना जहां गैर कांग्रेसी सरकार सत्ता में आई। लोकसभा के साथ कराए गए राज्य विधानसभा चुनाव में लेफ्ट को केरल की 126 में से 60 सीटों पर जीत मिली। पांच निर्दलीय विधायकों के समर्थन से वाम दलों ने बहुमत भी हासिल कर लिया और ईएमएस नंबूदरीपाद देश के पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री बने।
One Nation One Election: कई विवादों के बीच केरल की यह गैर कांग्रेसी सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी।
One Nation One Election: इतिहासकार रामचंद्र गुहा अपनी किताब ‘इंडिया आफ्टर नेहरू’ में लिखते हैं कि कम्युनिस्ट विचाराधारा की किसी बड़े देश के बड़े राज्य के चुनाव में यह पहली जीत थी। शीतयुद्ध की ओर बढ़ती दुनिया के लिए यह नतीजे कई सवाल भी लेकर आए थे। कई विवादों के बीच केरल की यह गैर कांग्रेसी सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी। महज दो साल बाद ही ईएमएस नंबूदरीपाद सरकार को बर्खास्त कर दिया गया।
1960 में राज्य में नए सिरे से विधानसभा के चुनाव हुए। इन चुनावों में वाम दलों को बहुत बड़ी हार मिली। कांग्रेस ने इन चुनाव में सोशलिस्ट पार्टी और मुस्लिम लीग से गठबंधन कर लिया। इस गठबंधन के लिए खुद नेहरू ने जमकर प्रचार किया। ये चुनाव लोकतंत्र और साम्यवाद में से किसी एक को चुनने का चुनाव बन गए। चुनाव के दौरान रिकॉर्ड 84 फीसदी मतदान हुआ। सोशलिस्ट पार्टी और कांग्रेस गठबंधन ने बड़ी जीत दर्ज की। कांग्रेस को 60 सीटें मिलीं तो उसके सहयोगी दलों ने 31 सीट पर जीत दर्ज की। वाम दल महज 26 सीटों पर सिमट गए। नतीजों के बाद एक और दिलचस्प बात हुई। 127 सीट वाले सदन में सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस थी, लेकिन मुख्यमंत्री सोशलिस्ट पार्टी के पीए थनुपिल्लई बने थे।
One Nation One Election: जब लोकसभा चुनाव राज्यों के विधानसभा चुनाव के साथ नहीं हुए
One Nation One Election: 1951 से लेकर 1967 तक एक साथ चुनाव हुए। जब पहली बार लोकसभा चुनाव अलग से कराया गया उसके पीछे दिलचस्प किस्सा है। बात, 1971 की है। केंद्र में इंदिरा गांधी की सरकार थी। इंदिरा अपनी ही पार्टी से बगावत करके कांग्रेस के दो टुकड़े कर चुकी थीं।
चुनाव में 14 महीने का वक्त बचा था। इंदिरा की नई पार्टी कांग्रेस (आर) नए सिरे से बहुमत हासिल करके अपने प्रगतिशील सुधारों को लागू करना चाहती थी। वो सुधार जिन्हें कांग्रेस के ओल्ड गार्ड्स की वजह से इंदिरा अब तक लागू नहीं कर सकी थीं। इसके लिए इंदिरा और उनकी पार्टी ने वक्त से पहले चुनावों में जाने का फैसला लिया।
One Nation One Election: इसके साथ ही यह तय हो गया कि लोकसभा चुनाव राज्यों के विधानसभा चुनाव के साथ नहीं होंगे। गुहा ‘इंडिया आफ्टर नेहरू’ किताब में लिखते हैं कि समय से पहले आम चुनाव करवाकर प्रधानमंत्री ने बड़ी चतुराई से अपने आपको विधानसभा चुनावों से अलग कर लिया था। गुहा लिखते हैं कि दोनों चुनाव साथ-साथ होने की स्थिति में जाति और नस्लीयता की भावना राष्ट्रीय मुद्दों को प्रभावित कर देती थी।
1967 के चुनावों में कांग्रेस को इससे बहुत नुकसान हुआ था। खासतौर पर तमिलनाडु, केरल, महाराष्ट्र और ओडिशा जैसे राज्यों में स्थानीय मुद्दों ने बहुत असर डाला था। इस बार इंदिरा ने तय किया कि पहले आम चुनाव करवाकर वो इन दोनों ही मुद्दों को अलग कर देंगी और जनता से राष्ट्रीय मुद्दों के आधार पर सीधा समर्थन मांगेगी।

One Nation One Election:विपक्ष ने इंदिरा हटाओ का नारा गढ़ा
One Nation One Election: वहीं, दूसरी ओर कांग्रेस के बुजुर्ग नेताओं के धड़े से बनी कांग्रेस (ओ) ने जनसंघ, स्वतंत्र पार्टी, समाजवादी और क्षेत्रीय पार्टियों के साथ मिलकर इंदिरा के खिलाफ एक महागठबंधन बनाया। इस महागठबंधन ने इंदिरा के खिलाफ अभियान चलाया। इसी दौरान विपक्ष की ओर से इंदिरा हटाओ का नारा गढ़ा गया। इस नारे को इंदिरा की कांग्रेस ने अपने पक्ष में मोड़ लिया। विपक्ष के नारे के जवाब में इंदिरा ने कहा कि वे कहते हैं इंदिरा हटाओ, हम कहते हैं गरीबी हटाओ। कांग्रेस का ‘गरीबी हटाओ’ का नारा जनता में चल गया।

One Nation One Election: इंदिरा ने नई और पुरानी पार्टी के फर्क को जनता के सामने रखा
One Nation One Election: ‘गरीबी हटाओ’ के नारे के जरिए कांग्रेस ने खुद को प्रगतिशील बताया जबकि विपक्ष को प्रतिक्रियावादी ताकतों का गठजोड़ बताया गया। चुनाव को व्यक्ति केंद्रित बना देने से विपक्ष को फायदे के बजाय नुकसान ही हुआ। दूसरी तरफ इंदिरा ने सत्ताधारी पार्टी के चुनाव प्रचार की कमान पूरी तरह से अपने हाथ में ले ली। दिसंबर 1970 में लोकसभा भंग होने के बाद से चुनाव तक इंदिरा ने 10 हफ्ते में 58 हजार किमी से ज्यादा की यात्रा की।

इस दौरान उन्होंने 300 से ज्यादा चुनावी रैलियों को संबोधित किया। करीब दो करोड़ लोगों ने उनका भाषण सुना। उस दौर में इंदिरा के इस चुनाव प्रचार, इंदिरा की सियासी स्थिति की तुलना 1952 के पंडित जवाहर लाल नेहरू के चुनाव प्रचार और सियासी हालात से की गई।

One Nation One Election: अपने भाषणों में इंदिरा गांधी ने अपनी नई पार्टी और पुरानी पार्टी के फर्क को खुलकर जनता के सामने रखा। इंदिरा इन भाषणों में यह संदेश देती थीं ‘पुरानी कांग्रेस’ रूढ़िवादी और निहित स्वार्थी के हाथों की कठपुतली थी जबकि ‘नई कांग्रेस’ गरीबों के हितों के प्रति समर्पित थी। इंदिरा की नई पार्टी की सांगठनिक कमजोरी को युवा कार्यकर्ताओं के उत्साह ने दूर कर दिया, जिन्होंने देशभर में घूम-घूम कर अपने नेता के संदेश को फैलाया। मतदान के दिन, मतदान केंद्रों पर उमड़ी भारी भीड़ ने साफ कर दिया कि लोग तकलीफों से छुटकारा पाने के लिए नई उम्मीदों से लबरेज हैं।

One Nation One Election: ओल्ड गार्ड्स की कांग्रेस को जनता ने नकारा
One Nation One Election: जब नतीजे सामने आए तो 518 सीटों में से कांग्रेस (आर) को 352 सीटों पर जीत हासिल हुई जबकि दूसरे नंबर पर आने वाली सीपीएम को महज 25 सीटें ही मिल पाईं। एक और वामपंथी पार्टी सीपीआई को 23 सीटें तो जनसंघ को 22 सीटों पर जीत मिली। वहीं, विपक्षी गठबंधन में सबसे ज्यादा 238 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली कांग्रेस (ओ) को महज 16 सीटों से संतोष करना पड़ा।
इन नतीजों ने साफ कर दिया कि जनता ने पुरानी रुढ़िवादी सोच वाली ओल्ड गार्ड्स की कांग्रेस को पूरी तरह से नकार दिया। जीत के भारी अंतर ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि इंदिरा गांधी की कांग्रेस ही असली कांग्रेस है। नतीजों के विजेता और पराजित होने वाले, दोनों ने ही स्वीकार किया कि यह एक ही व्यक्ति की जीत थी। वो शख्सियत थीं इंदिरा गांधी।

One Nation One Election: 1952 से कांग्रेस दो बैलों की जोड़ी चुनाव चिह्न के साथ चुनाव में उतरी रही थी। 1971 के चुनाव में कांग्रेस में हुई टूट के बाद इंदिरा गांधी की कांग्रेस (आर) गाय और बछड़ा चुनाव चिह्न के साथ मैदान में उतरी थी। 1971 के लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज करने वाली इंदिरा गांधी की कांग्रेस (आर) आगे चलकर कांग्रेस (आई) बनी और पार्टी का चुनाव चिह्न हाथ का पंजा हो गया। और फिर कांग्रेस (आई) से ये आई भी हट गया। बाद में कांग्रेस (आर) कांग्रेस (आई) और फिर कांग्रेस बन गई।

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